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आदर्श महिला

के न पतियाने और क्रोध करने का ख़याल करके वह बहुत घबराई। सोचने लगी कि यह सब शनि की चालें हैं। जो हो, सत्य के रास्ते में मनुष्य को विपद नहीं है।

रानी ने व्याकुल चित्त से राजा के पास जाकर सब हाल कह सुनाया। सुनकर राजा ने कहा—रानी! इसके लिए चिन्ता करने की क्या ज़रूरत? यह सभी, इस अभागे के साथ, निठुर देवता की दिल्लगी है! नहीं तो कहीं भुनी मछली जीकर भागी है? कहीं भयानक बाढ़वाली नदी को नाव और मल्लाह सहित ग़ायब होते देखा है! जो हो, सोच मत करो। अगर तुम मेरे हृदय को पहचानती हो तो खेद करना छोड़ो।

स्वामी के न पतियाने के ख़याल से सती का हृदय व्याकुल था। जब उन्होंने ऐसी बात कही तब रानी ने पुलकित होकर भूखे स्वामी के भोजन के लिए कुछ फल-मूल ला दिया। राजा-रानी दोनों एक जगह बैठकर बातचीत कर रहे हैं। इतने में एक बूढ़ा लकड़हारा आया। उसने प्रणाम कर कहा—क्यों महाशय! आप इतना कष्ट क्यों पा रहे हैं। चलिए, हम लोगों के साथ लकड़ी चुनकर बाज़ार में बेचा कीजिए। तब आप लोगों को कोई कष्ट नहीं होगा।

राजा ने रानी से कहा—"यह सलाह तो बुरी नहीं है।" लकड़ियों का बोझ सिर पर रखकर राजा बाज़ार में बेचने जायँगे, यह सुनकर रानी की छाती टूक-टूक हो फटने लगी। रानी कुछ कह नहीं सकी। राजा ने कहा—देवी! मैं तुम्हारे मन का भाव समझ गया, किन्तु रानी! इस संसार में मनुष्य धन-दौलत लेकर नहीं आया है। जाते समय भी वह कुछ ले नहीं जायगा। पृथिवी का जो कुछ ऐश्वर्य, है, जो कुछ धन-दौलत है, सब अन्त को यहीं पड़ा रहेगा। इस पृथिवी पर आने के पवित्र दिन में, प्रेम-मय परमेश्वर से मनुष्य जो