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आख्यान]
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चिन्ता

करके मेरी नाव चलने का उपाय बता दें तो मैं आपको बहुत धन दूँगा।

बूढे ज्योतिषी ने कहा—देखो भैया! पास ही लकड़हारों का एक गाँव है। उस गाँव में एक सती स्त्री है। वह इस नाव को छू दे तो यह तुरन्त चलने लगे। तुम्हारी नाव और किसी तरह नहीं चलेगी।

यह सुनकर सौदागर ख़ुश हुआ। उसने ज्योतिषी को बहुतसा रुपया देकर बिदा किया।

सौदागर ने सोचा कि लकड़हारों के गाँव में बहुतेरी स्त्रियाँ हैं। यह पता लगाना बड़ा कठिन है कि उनमें कौन सती है। उसने उसी दिन उस गाँव की स्त्रियों को न्यौता देने के लिए एक आदमी भेजा।

इसके पहले एक दिन लकड़हारे लोग रानी के न्यौते में राजसी भोजन पाकर तृप्त हुए थे। आज सौदागर के न्यौते को पाकर बड़ी ख़ुशी से न्यौता मानकर वे सौदागर की नाव पर पहुँचे, परन्तु नाव किसी भी तरह नहीं चली। सौदागर ने फ़िक्र करके जो आदमी न्यौता देने गया था उससे पूछा—"क्या तुमने लकड़हारों की सब स्त्रियों को न्यौता दिया था?" उसने विनती कर कहा—हाँ, महाशय! मैंने सबको न्यौता दिया था। केवल एक स्त्री ने न्यौता नहीं लिया। उसने कहा कि बेटा! मेरे स्वामी इस समय बाज़ार में लकड़ी बेचने गये हैं। उनकी आज्ञा बिना मैं तुम्हारा न्यौता कैसे ले सकती हूँ? सिर्फ उसी ने न्यौता नहीं लिया।

सौदागर ने सोचा कि हो न हो वही स्त्री सती है। उसी के छूने से मेरी नाव चलेगी। यह सोचकर वह तुरन्त नाव से उतरकर उस नौकर के साथ श्रीवत्स की कुटी के पास पहुँचा। चिन्ता ने, दोनों अतिथियों के सत्कार के लिए आसन और हाथ-मुँह धोने को