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आदर्श महिला

चिन्ता ने सोचा कि रूप ही स्त्रियों के लिए काल है। इस रूप के मोह में अभागे पुरुष, दीपक पर मोहित होनेवाले पतङ्ग की तरह, जलकर प्राण दे देते हैं। यह अभागा बनिया भी उसी मोह में आत्महत्या करना चाहता है। संसार की व्यथा को हरनेवाले भगवान् सूर्यदेव! अगर मैं तन, मन से अपने पति-देवता के पवित्र चरणों का ध्यान करती होऊँ तो आप दया करके मुझे कुरूप कर दीजिए—मुझे कोढ़ी बना दीजिए। एक दिन रूप माँगा था, मनुष्यों में देवता-रूप अपने स्वामी का चित्त प्रसन्न करने के लिए; और आज रूप का विनाश चाहती हूँ, सतीत्व की लाज रखने के लिए। हे लज्जा की रक्षा करने वाले! नारी की मर्यादा रखिए—मुझे कोढ़ी बना दीजिए।

उसी दिन से चिन्ता का बदन फूट चला। उसकी देह गलने लगी। कोढ़िनी के शरीर की दुर्गन्ध से नाव के सब आदमी घबरा, उठे, लेकिन स्वार्थी सौदागर ने किसी की बात पर कान नहीं दिया। सती की नेत्राग्नि उसकी छाती को जलाने लगी।

[१३]

इधर श्रीवत्स ने कुटी में आकर देखा कि चिन्ता नहीं है। वे चारों ओर चिन्ता को पुकारने लगे। उनके मुँह से चिन्ता के सिवा और कोई शब्द ही नहीं निकलता। उन्होंने एक बार सोचा कि चिन्ता कहीं पड़ासिनों के यहाँ गई होगी, अभी आ जायगी। वे हृदय को समझाने की बड़ी कोशिश करते हैं पर हृदय किसी तरह नहीं समझता। आँखों से आँसू निकल कर उनको कुछ देखने नहीं देते। चिन्ता के विरह में व्याकुल होकर राजा विलाप कर रहे हैं। इतने में लकड़हारों की कई स्त्रियों ने वहाँ आकर चिन्ता के सौदागर द्वारा हरे जाने का समाचार सुनाया। चिन्ता के हरे जाने की बात सुनकर श्रीवत्स अधीर हो उठे। लकड़हारे और उनकी स्त्रियाँ