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आख्यान]
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चिन्ता

मालिन तुरन्त बन्धन खोलकर राजा को अपने घर ले गई। राजा मालिन के घर रहने लगे।

मालिन की फुलवाड़ी में वसन्त की हवा लगी। इससे वाटिका की शोभा अपार हो गई है। मालिन तरह-तरह के फूल चुनकर राजकुमारी के यहाँ पहुँचाती है।

एक दिन श्रीवत्स ने मालिन से पूछा—इस राज्य का और यहाँ के राजा का नाम क्या है?

मालिन ने कहा—इस राज्य का नाम सौतिपुर है। बाहुदेव यहाँ के राजा हैं जो साक्षात् इन्द्र के समान हैं।

राजा ने पूछा—तुम प्रतिदिन इतने फूल लेकर क्या करती हो?

मालिन ने कहा—राजकुमारी भद्रा को शिवजी की पूजा करने को लिए मैं राजमहल में फूल और माला दे आती हूँ।

श्रीवत्स ने कहा—"आज मैं तुमको एक माला गूँथकर देता हूँ" मालिन ने ख़ुशी से उनके सामने फूलों की टोकरी और सुई-धागा आदि रख दिया। राजा ने नये ढंग की एक माला गूँथकर फूलों की डलिया में फूलों से ही एक पद्य लिख दिया—

"सरवर बसे सरोजिनी सूरज इसे अकास।
होत परस्पर मिलन सुख अद्भुत प्रेम-विकास॥"

राजकुमारी भद्रा ने आज माला की अनोखी सजावट देखकर अचरज से पूछा—"क्यों री मालिन! आज यह माला किसने गूँथी है, और किसने इस तरह फूलों को सजाया है? इसमें तो बड़ी कारीगरी की गई है।" मालिन ने मुसकुराकर कहा—क्यों राजकुमारी! क्या हुआ? मैं क्या ऐसी माला नहीं बना सकती? आज सबेरे चित्त ज़रा ठिकाने था, इससे बैठे-बैठे मन लगाकर यह माला गूँथ लाई हूँ। क्यों, क्या अच्छी नहीं बनी?