पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६२
[पाॅंचवाॅं
आदर्श महिला


राजकुमारी ने कहा—नहीं मालिन, यह माला तुम्हारी गूँथी नहीं है। यह तो किसी अच्छे कारीगर के हाथ की कारीगरी है।

मालिन उस दिन राजकुमारी को बातों में बहलाकर वहाँ से चली आई। घर आकर उसने श्रीवत्स से राजकुमारी की बात कही।

[१५]

सौतिपुर की राजकुमारी का स्वयंवर है। देश-देश से राजकुमार आये हैं। एक ओर स्वयंवर की तैयारी ने, और दूसरी ओर भद्रा को ब्याहने की इच्छा रखनेवाले राजकुमारों के ठाट-बाट ने, राजा बाहुदेव की राजधानी की शोभा अपार कर दी। चारों ओर आनन्द की लहरें उठने लगीं।

महाराज श्रीवत्स भी स्वयंवर-सभा का ठाट-बाट और भीड़ देखने के लिए चले, किन्तु अपने दीन वेष का खयाल कर वे बहुत आगे नहीं बढ़ सके। स्वयंवर-सभा के बाहर एक कदम्ब के पेड़ के नीचे बैठ गये।

राजकुमारी भद्रा ने स्वयंवर-सभा में जाकर देखा कि राजकुमार लोग कीमती पोशाक पहने हुए बैठे हैं। राजकुमारी ने उन राजाओं को यथायोग्य प्रणाम करने के बाद, विनती कर कहा—"आप लोग आशीर्वाद दीजिए जिससे मैं अपने मनभावने देवता के गले में जयमाल डालूँ।" इतने में आकाशवाणी हुई—

"जाके हित तप कर दिये बारह वर्ष बिताय।
सो कदम्बतरु के तले बैठे हैं प्रिय आय॥"

यह आकाशवाणी राजकुमारी के सिवा और किसी को नहीं सुन पड़ी। आकाशवाणी सुनकर राजकुमारी बड़ी प्रसन्नता से, स्वयंवरसभा के बाहर, कदम्ब के पेड़ की तरफ़ गई। राजकुमार उत्सुक होकर उधर देखने लगे। राजकुमारी ने पेड़ के नीचे जाकर देखा,