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आदर्श महिला

कष्ट पा रहा हूँ। सो तुम एक बार राजधानी में जाओ, और अपने पिता से कहकर मेरी जीविका का कोई इन्तज़ाम कराओ।

भद्रा राजधानी में गई। उसने अपनी माता से सब हाल कहा। रानी के कहने से राजा ने श्रीवत्स को चुङ्गी वसूल करने के काम पर मुकर्रर कर दिया।

राजा श्रीवत्स नदी किनारे बैठे रहते हैं। जितनी नावें वहाँ से निकलती हैं, उनको कर वसूल करके जाने देते हैं।

एक दिन उसी सौदागर की नाव वहाँ आई, जिसने श्रीवत्स को नदी में पटक दिया था। राजा श्रीवत्स ने, अपनी सोने की ईटों को नाव में उसी तरह रक्खी देखकर, अपने मातहतों को हुक्म दिवाये सोने की ईंटें नाव से उतार लो।

अफ़सर का हुक्म पाकर नौकरों ने सोने की ईंटें झटपट उतार खीं। सौदागर ने राज-दरबार में नालिश की।

तब राजा श्रीवत्स बाहुदेव के दरबार में गये। उन्होंने यथायोग्य प्रणाम कर कहा—महाराज! ये सब मेरी हैं। मैं इस सौदागर की नाव पर, इनको लादकर वाणिज्य करने निकला था। पर इस दुष्ट ने, कीमती ईंटों के लोभ से, हाथ-पैर बाँधकर मुझे नदी में डाल दिया। किसी तरह बचकर मैं आपकी राजधानी तक पहुँच सका। महाराज, ईटों के बनाने में अजीब कारीगरी है और किसी भी सबूत की ज़रूरत नहीं। अगर ईटें सौदागर की हैं तो वह इनको खोलकर अलग-अलग कर दे।

सौदागर खोल नहीं सका। राजा श्रीवत्स ने राज-सभा में सबके सामने उन ईंटों को अलग-अलग कर दिया। तब राजा ने अचरज के साथ सौदागर को डाँटकर खदेड़ दिया।

राजा के अचम्भे को देख श्रीवत्स ने विनती कर कहा—