तू बच भी सकता है पर मेरा अपमान करके, मेरे महाबली स्वामी के क्रोधानल से, कभी निस्तार नहीं पावेगा।
दुष्ट रावण ने एक न सुनी। वह न जाने किस ख़याल में था। पाप-वासना उसको न जाने किस कालसमुद्र की ओर ढकेल रही थी! रावण ने सुध-बुध भूलकर मानो बिजली को गले लगाने की चेष्टा की; उसने मानो काली नागिन को छाती पर रखने की इच्छा की। पर यह नहीं देखा कि आँखों में चकाचौंध लगानेवाली बिजली के भीतर प्राण का नाश कर डालनेवाली शक्ति है; उसने यह नहीं समझा कि काली नागिन के हलाहल से मेरे वंश भर का नाश हो जावेगा।
रावण ने देखा कि सीता साधारण स्वभाव की स्त्री नहीं। यहाँ बातों से कोई काम नहीं होगा, यह सोचकर उसने एक हाथ से सीता की चोटी और दूसरे हाथ से कमर पकड़कर रथ पर चढ़ा लिया और आकाश को ले उड़ा। सीता के रोदन से दशों दिशाओं में शोक छा गया। पञ्चवटी की शोभा मारी गई। वृक्ष मानो उदास भाव से खड़े होकर काँपने लगे।
"हा राम हा रमण हा जगदेकवीर, हा नाथ हा रघुपते किमुपेक्षसे माम्?
इत्थं विदेहतनयां बहुधालपन्तीमादाय राक्षसपतिर्नभसा जगाम॥"
सीता का आर्त्तनाद सुनते ही दण्डक वन-वासी वृद्ध जटायु ने आकर रावण से कहा—अरे दुष्ट! मैं तुझे जानता हूँ। आज फिर तूने किसके घर में आग लगाई है? तेरा यह अन्याय मुझसे नहीं सहा जायगा। सताई हुई सती का विलाप सुनकर मेरा खून खौल रहा है। पापी! आज तू मेरे हाथ से बच नहीं सकता।
रावण ने सुनकर इसकी कुछ परवा नहीं की। तब बूढ़े जटायु ने अपनी सारी शक्ति लगाकर रावण पर हमला किया। किन्तु अपनी रक्षा करने में वह समर्थ नहीं हुआ। घायल होने पर उसने सती को