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[ दूसरा
आदर्श महिला

सखियों-सहित रथ से उतर पड़ी। सबेरे के समय तपोवन की बड़ी सुहावनी शोभा थी! शीतल मन्द बयार, वन-वृक्षों के नये-नये पत्तों से छेड़-छाड़ करती, फूलों की सुगन्ध लिये, अठखेलियाँ कर रही थी। पेड़ों की डालियों पर बैठे मोर बोलते थे। हरिणों के जोड़े जंगली रास्ते के किनारे खड़े होकर उन लोगों को चकित दृष्टि से निहारने लगे। सावित्री ने देखा कि सरोवर में नयन-मनोहर कमल खिलकर उपवन की शोभा बढ़ा रहे हैं। सबेरे की हवा उनकी सुगन्धि छीनकर चारों ओर फैला रही है। हंस और चक्रवाक आदि जलचर पक्षी तैर रहे हैं। फल-फूल और समिधा चुनने के लिए मुनियों के बालक, समान उमरवालों के साथ बातचीत करते हुए, फूले हुए वनवृक्षों की ओर जा रहे हैं। थोड़ी दूर पर मुनियों की कन्याएँ यज्ञ के लिए वेदी बना रही हैं। तपोवन की यह शोभा देखकर सावित्री मुग्ध हो गई। आज प्रातःकालीन सूर्य ने सावित्री की देह-लता को नई शोभा से सजा दिया। फूली हुई बनैली-लताएँ हर्ष से तपोवन देखने को आई हुई राजकुमारी के बदन पर मानों फूल बरसाने लगीं। फूलों का मधु पीकर मतवाले दो-एक भौंरे सावित्री के सुगन्धित चमकीले बालों के चारों ओर मँडराने लगे।

बूढ़े मंत्री ने सावित्री के अतिशय आनन्द को देखकर कहा—"राजकुमारी! यह तपोवन है। यहाँ किसी प्रकार का डर नहीं। आप दाई और सखियों सहित निडर होकर तपोवन की शोभा देखिए। अगर आज्ञा हो तो मैं पास के तपस्वियों से इस आश्रम के विषय में कुछ पूछ-ताछ करूँ।" राजकुमारी ने कहा—अच्छा, आप जाईए। मैं दाई और सखियों के साथ इस कुञ्ज की ओर जाती हूँ।

मंत्री के प्रणाम करके चले जाने पर सावित्री कुञ्ज की ओर बढ़ी। कुञ्ज से थोड़ी दूर पर एक निर्मल जलवाली नदी वन को हरा