पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१००

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कम न कहना चाहिए। कुछ श्रद्धा और कुछ जोरावरी से, इन लोगों के पास जो कुछ था सब कुछ उन्होंने छीन लिया। उनके कपड़े फट गए। भिखमँगों की खैंचा तान से, हाथ पैर पकड़ने, मसकने और दवाने से शरीर छिन्न भिन्न हो गया और लहू लूहान हो गया। सब की आँखों में आँसू निकल पड़े। पंडित जी ने साहस बटोर कर पुलिस को भी पुकारा पंरतु इनके शोर गुल के मारे जब कान पड़ी बात ही नहीं सुनी जाती थी तब कहाँ नक्कारखाने में तूती की आवाज़। औरों ने तो इस विपत्ति को जैसे तैसे रो धो कर सहा भी परंतु इधर प्रियंवदा मूर्च्छित हो पड़ी तब उधर बूढ़ा भगवान दास और उसकी स्त्री मरने के लिये जोर जोर से साँस लेने लगे।

बस इस तरह तीन आदमियों के गिरते ही भिखमँगो को चिंता हुई कि कहीं पकड़े जाँयगे। चिंता क्या कोरी मोरी ही थी। एक आदमी चार पाँच काँस्टेवलों को लेकर यहाँ आ पहुँचा। उनकी सूरत देखते ही तुरंत भीड़ काई सी फट गई। एक दो और तीन मिनट में भीड़ के भिखमँगे भाग कर तितर बितर हो गये। तीनों को पंखा झलने से, आँखों पर पानी छिड़कने से और इस तरह के अनेक उपचार करने से होश आया। और सब के सब पुलिस को धन्यवाद देते उस आदमी की प्रशंसा करते करते अपने डेरे पर पहुँचे।

उस आदमी की प्रशंसा इन लोगों ने अवश्य ही की परंतु प्रशंसा सुनने के लिये वह वहाँ खड़ा न रहा। पुलिस को दूर