पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ८८ )

ही से यहाँ का दृश्य दिखाकर वह एकाएक चंपत हुआ। इस याना पार्टी में केवल एक के सिवाय किसी ने उस को देखा तक नहीं। देखा किसने? प्रियंवदा ने। दूर ही से उसे देखकर इसके मन में न मालूम कैसा भाव उत्पन्न हुआ सो भगवान जाने कयोंकि एक अबला रमणी के मन की थाह बलवान विधाता भी नहीं पा सकता। प्रियंवदा को अवाजा सुनाने वाला और इनकी रक्षा के लिये पुलिस को लानेवाला ये दोनों एक ही व्यक्ति थे अथवा अलग? इसका उत्तर अभी तक होनहार की गोद में है। समय ही इसे प्रकाशित करेगा।

अस्तु! और तो जो कुछ होना था सो हो गया किंतु बंदर चौबे की क्या गति हुई? वह साढ़े तीन हाथ का मोटा मुसंडा आदमी होने पर भी सचमुच अपने नाम को सार्थक करने के लिये दुमदार बंदर बन गया। दुमदार बंदर जैसे छीना झपटी से खा पीकर डंडे के डर से डाली पर जा छिपते हैं वैसे ही यह भी अपने यजमान से दक्षिणा पाकर जिस समय उन पर चारों ओर से गालियों के ओले बरसने लगे थे जिस समय उनके लिये "यह कहा देगो? सारो भिखारी? अरे दलहर है? सुडचिरा है! नास्तिक है! इसका सत्यानाश जइयो! हम गरीबन को आस ही आस में याने इतनी बिरियाँ बिठला रक्खा।" के अवाजे फेंके जा रहे थे यह भागकर अपने घर आया और वहाँ पहुँच कर रजाई ओढ़े पड़ रहा। चौबा- यिन ने इससे बहुत खोद खोद कर पूछा। उसने―"कहा