पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१०४

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रहेगी। बुढ़ापे में सालेगी।" तब पंडित जी कहने लगे― "बेशक आज एक न एक की अवश्य मौत हो जाती। भगवान ने ही बचाया। मेरा शरीर भी बिलकुल जर्जर हो गया है। यदि मैं थोड़ा भी कड़ा न पड़ जाऊँ, यदि मैं लातों और घूँसों से उस भीड़ को न हटाऊँ तो आज मेरा बदन कौड़ियों का थैला हो जाता। आज मरने में कसर नहीं थी।" इस तरह सब की रिपोर्ट पेश हो जाने के साथ ही सब ही की सेक पट्टी की गई। भोला कहार अवश्य ही इस मार पीट से; इस खैंच तान से बच गया था क्योंकि जिस समय घाट पर धक्का मुक्की होने लगी यह भाग कर डेरे पर चला आया था। यहाँ आकर पहले वह खूब सोया और फिर मालिक मालिकिन के आने से पहले ही बाज़ार की सैर देखने और खाने पीने चला गया था।

रात्रि के आठ बजे खा पीकर पेट पर हाथ फेरता और लंबी लंबी डकारें लेता जब वह वापिस आया तो उसकी सूरत देखते ही पंडित जी का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने गुस्से में आकर उसके थप्पड़ भी जमाए परंतु–"नौकर को मारना अच्छा नहीं। वह सामने हो जावे तो अपनी बात बिगड़ जाय।" कह कर प्रियंवदा ने उसे बचा दिया। सब के सब थके माँदे तो थे ही सेक पट्टी से विश्राम मिलने पर सो गए तो पति के चरण चाँपते समय प्रियंवदा को प्राणनाथ से इस तरह बातें होने लगीं―