पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१०९

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"इनाम क्या? यह शरीर हाजिर है! यह मन हाजिर है और सर्चस्व हाजिर है;!"

"मह तो मेरा है ही! मैंने अपना देकर अपना लिया।"

"हाँ! बेशक! एक बार दासी बन कर तैंने जन्म भर के लिये मुझे अपना दास बना लिया।"

"केवला जन्म भर से ही छुटकारा न होगा। जन्मजन्मां- तर के लिये! अनेक जन्मों के लिये! 'जेहिं जोनि जन्महुँ कर्म वश तहँ राम पद अनुरागहूँ!' परंतु आप को दास नहीं बनाया है। अपना स्वामी! प्राणनाथ! हृदयेश्वर! जींवन सर्मस्व!"

"भगवान इसका निर्वाह करे!"

"अवश्य निर्वाह करेगा। भरोसा है, करेगा।

"हाँ करेगा। करना ही चाहिए।" कहते कहते दोनों को निद्रा देवी ने धर दबाया। दिन के थके माँदे तो थे ही। पड़ते ही नींद आ गई और ऐसी निद्रा आई कि जब तक बंदर चौबे की कागावासी छनने का समय न आया ये दोनों गहरी नींद में खूब खर्राटे भरते रहे।

भोर ही उठ कर बंदर चौबे ने सिलौदी सँभाली। उस पर भंग, मिरच, सौंफ, बादाम, और मसाला डालकर पीसना आरंभ किया। वह भंग भवानी की आराधना में, खूब लड़ा लड़ा कर, सिलौटी के राग में अपनी तान मिला कर इस तरह गाने लगा―