पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/११४

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बातें करने लगी। चौबे भी निरा गँवार ही नहीं था। इन दोनों की हँसी को ताड़ गया। उसे कुछ क्रोध भी आया और थोड़ा शर्माया भी सही। वह बोला―

"जजमान, ये तो घर के धंदे हैं! यूँही भयो करैं हैं। घर घर माटी के चूल्हा हैं।" पंडित जी ने-"हाँ? बेशक!" कहकर इस कथा को समाप्त कर दिया।



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