पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१२१

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दे क्या राजी खुशी से दिया? वे सब छीन कर ले गए। राई रत्ती ले गए। पानी पीने के लिये एक लोटा तक न छोड़ा। जहर खाने के लिये एक पाई तक नहीं। लाज ढाँकने के लिये कपड़े के नाम पर यदि एक फटी साड़ी भी दे देते तो कुछ बात भी थी परंतु सब बातों का सार यही है कि उन्होंने एक लंगोटी के सिवाय कुछ भी न दिया और उसी समय ये पाँचों और छठा गाड़ीवान चैलों की जोड़ी को लिए हुए जल्दी जल्दी कदम बढ़ाकर वहाँ से चंपत हुए। जब तक यह अपनी नजर के हरकारे भेजकर उनका पीछा कर सकी इसने किया और उनमें से इसने कुछ कुछ एक आदमी को पहचाना भी। यह शायद अधिक भी पहचान लेती परंतु एकाएक इसके कानों पर "मारो! मारो!" और "पकड़ो! पकड़ो!!" की आवाज आई। और बात की बात में आठ दस आदमियों ने उन पाँची को घेर लिया। घेरते ही दोनों ओर से खूब लठबाजी हुई। इसके देखते देखते दोनों ओर के दो तीन आदमी घायल होकर गिर गए, उनकी खोपड़ियाँ फरकर लहू से धरती लाल हो गई और एक पल भर में "हाय मरारे? हाय वेतरह मारा गया?" के गगनभेदी रुदन ने उस प्रशांत जंगल के पशु पक्षियों में हल चल मचा दी। जब इसके पास का सब माल मता लुट चुका था तब "नंगे का चोर क्या छीनै?" इस कहावत से इसे भय चोरों का भय नहीं था। इसलिये यह घने पेड़ों की आड़ में खड़ी रहकर यह देखना