पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१२३

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से रूठ कर उस हरामजादी के बहकाने से अपना सारा माल सता न ले आती तो चोर ही मुझे क्यों लूटते? मैंने अपनी आँखों से देख लिया कि लुटेरों में मथूरिया का आदमी था। परंतु हाय? अब मैं क्या करूँगी? मेरा धन गया, कपड़े गए, जेवर गया और चोरों को पकड़ ले जाने वालों में जो कहीं वे ही हों तो उनके भी चोट इतनी आई है कि उनका बचना मुशकिल। हाय? अब मैं विधवा होकर कैसे जियूँगी। मैंने जैसा किया वैसा पाया। कुसूर मेरा ही है। मुझे खूब दंड मिल गया। हाय मैं मरी? अरे कोई मुझे बचाओ?"

अपनी बेटी का दुःख देखकर माता बहुत रोई। पिता को कष्ट अवश्य हुआ परंतु इसलिये नहीं कि बेटी का सारा मालताल लुट गया। क्योंकि जब वह अपने खाविंद से रूठकर आई थी तब उसे ऐसा दंड देने में परमेश्वर ने न्याय ही किया किंतु दुःख इसलिये हुआ कि उनकी कर्कशा बेटी ने अपने आदमी को सताया और वे उसे छुड़ाने ही में बहुत घायल हुए।


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