पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१३०

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लग गया और इन्होंने माल और मुजरिमों को पुलिस के हवाले करके अपनी रिपोर्ट लिखवाने, अपना बयान देने और माल मुजरिमों की रसीद लेने के अनंतर अपने घर का रास्ता लिया।

छोटे भैया के मुख से "अथ से लेकर इति तक" सारा किस्सा सुन कर पंडित प्रियानाथ ने उनकी वीरता को सराहा सही परंतु सुखदा को पीहर पहुँचा कर न आने पर वह कुढ़े भी कम नहीं। यद्यपि देवर के चोट गहरी आजाने से प्रियंवदा उनकी मरहम पट्टी में लगी हुई थी और उसने आँख के इशारे से जब पति से नाहीं कर दी थी तब उन्होंने उनसे कुछ कहना और सो भी इस कष्ट के समय कहना उचित नहीं समझा, परंतु वे स्वयं इस बात से सुस्त न रहे। वे घोड़ी पर काठी कसवा कर खुद गए और अँधेरी रात और मेह बादल की पर्वाह न कर प्रियंवदा के मना करने पर भी गए। रातों रात चल उन्होंने दिन निकलते निकलते घटना स्थल का पता लगाया और वहाँ से खोज खोज कर जब वह सुखदा की खोज में उसके बाप के घर में जा घुसे तब समधी से मिले बिना ही, उसके देख लेने पर घोड़ी दौड़ा कर अपने गाँव में वापिस आगए।

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