मेरा नाम बदल देना। इस बात पर दंपत्ति की आपस में कलह होने में भी कलर न रही। विमला इतनी समझदार थी कि उसने सुखदा की तरह अपने पति की झाडू से पूजा नहीं की। यह बहुत रोई झाँकी तो पंडित वृंदाबन बिहारी चुप और उसने अपने पति से नाराज होकर दो दिन तक खाना न खाया तो वे चुप। वस हार झख मार कर वह सीधी हुई।
जिस लमय पंडित जी स्नान के लिये निकले रात के चार बजे थे। गर्मी का मौसिम था। अभी पौ नहीं फटी थी। चोखट से बाहर पैर रखते ही उनकी दृष्टि किसी लंबी लंबी वस्तु पर पड़ी। उन्होंने अपनी घरवाली को पुकार कर लालटैन के उजाले में देखा और देखते ही उसे पहचान कर "हाय तेरी यह दशा!" कह कर वे चुप हो गए। विमला अपनी बेटी की ऐसी दुर्दशा देख कर बहुत रोई चिल्लाई, उसने दामाद को, सुखदा के जेठ जिठानी को और उनकी सात और सात चौदह पीढ़ी को जी खोलकर गालियाँ दीं। उसने अपनी छाती माथा कूट कूट कर लाल कर डाला परंतु पंडितजी बोले―"अब रोने झींकने से होगा क्या? जैसा तैने बोया है वैसा ही काट!" इतना कह कर विमला की सहा- यता से वे उसे उठाकर भीतर ले गए। वहाँ जाकर उन्होंने उसे स्नान कराने के अनंतर चारपाई पर लिटाया। वे स्वयं एक नामी वैद्य थे। उन्होंने दवा दी। इसके बाद का जो कुछ