पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १२१ )

मेरी लाली! (छाती से लगाकर) घबडावै मत। जो तेरा बाप तुझे निकाल दे तो मैं अपनी जान दे डालूँ! मैं मर मिटूँ!"

"तू कल जान देती आज ही दे डाल! भले ही तू भी इसके साथ ही चली जैयो। मैं आज कहता हूँ, साफ़ साफ़ कह देता हूँ। मैं इसे यहाँ नहीं रहने दूँगा। इसे जब तक आराम न हो यह बेशक यहाँ रहे। मैं नाहीं नहीं करता। परंतु आरोग्य होते ही मैं या तो उन्हें बुलाकर उनके सिपुर्द कर दूँगा अथवा किसी मौतबर आदमी के साथ वहाँ ही भेज दूँगा। जहाँ की चीज वहाँ ही अच्छी!"

पंडित जी की आज्ञा सुनकर माँ बेटी ने खूब रो धोकर कुहराम मचाया। उन दोनों के रोने के राग में छाती माथा कूटने की ताल मिल जाने से जो कोलाहल हुआ उसने पड़ोसियों के मन में कुतूहल पैदा किया। किसी ने समझा "इनके यहाँ कोई मर गया है।" कोई बोली―"मरैगा कौन? बिचारी सुखदा मरी होगी।" किसी ने कहा―"बिचारी नहीं! वह बड़ी हरामजादी है! रामजी ऐसे तिरिया चरित्तर से बचावै।" कोई कहने लगी―"नहीं! उसका कुछ कुसूर नहीं है। उसके ससुराल वाले बड़े खोटे हैं। बात बात में उसे मारते कूटते हैं। और उसका बाप भी उन्हीं की मदद करता है।" तब तुरंत किसी ने कह दिया "कुछ भी हो हमें क्या? चलो! तमाशा देखें।" बस इस तरह के सवाल