पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१४३

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किस किस जगह क्या क्या करना होता है, इत्यादि बातें जानने के लिये मथुरा में "बनयात्रा" की अनेक छोटी मोटी पुस्तकें मिल सकती हैं। इन्होंने यहाँ के गुण दोषों का जैसा कुछ अनु- भव पाया वैसा प्राप्त करने का काम या तो यात्रा ही करने से हो सकता है अथवा इस विषय पर कोई स्वतंत्र पुस्तक लिखी जाय तो हो सकता है। मुझे अभी इन्हें बहुत दूर तक ले जाकर घर पहुँचाना है और भी कई एक घर गृहस्थी की बातें दिखलानी हैं इसलिये पाठक महाशय क्षमा करें।

इन्हें इस यात्रा में भले और बुरे सब तरह के मनुष्य मिले। भले मिले तो यहाँ तक कि जिन्हें भगवती मार्तंडतनया में स्नान कर, यमुना की रेणुका में लोटने, भगवान श्री कृष्णचंद का भजन करने और दो मुट्ठी चना चबा कर लोटा भर जल पीने के सिवाय कुछ काम नहीं, पैसा, दो पैसा और रुपया दो रुपया तो क्या यदि हजार रुपये भी कोई देने को तैयार हो जाय तो उसकी ओर आँख उठाकर भी न देखें। और बुरे मिले तो ऐसे कि एक एक पाई के लिये मूड़ चीरनेवाले, चोरी और उठाई- गीरी में उस्ताद "मुख में राम बगल में छुरा" वाले ढ़ोगी साधु। इन्हें यदि संतोषी मिले तो ऐसे कि तीन मील तक आपके इक्के के साथ दौड़े जाने के अनंतर आपने जो एक पैसा फेंका उसकी तीन पाइयाँ बाँट कर चचप हो जानेवाले और असंतुष्ट, उचक्के मिले तो यहाँ तक कि यदि आप पैसा न दो तो गालियाँ दें और जो कहीं आप उन्हें आँखें दिखाना चाहो