पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१४४

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तो आप की पगड़ी उतार लें! खैर! इन सब बातों का इन्होंने बह परिणाम निकाला कि―

"मथुरा में आज कल के जमाने की सी जितनी बनावट है गाँवों में उतना ही सीधापन है। वास्तव में यह श्रीकृष्ण का लीलाकेंद्र है। ब्रजवासी अवश्य ही धन्य हैं जो यहाँ जन्मते और यहीं मरते हैं। ब्रजभूमि में जन्म लेने में भी आनंद और मरने में भी आनंद। यमुना मैया की रेणुका में लोटने से वस्तुतः दैविक, भौतिक और दैहिक ताप दूर होते हैं। भगवान बलदाऊ जी के दर्शन कैसे अलौकिक हैं! उनकी मूर्ति में आहा! कैसी आकर्षिणो शक्ति है? गिरिराज के दर्शन करते ही जब गोवर्द्धन धारण का दृश्य मेरी आँखों के सामने आ खड़ा हुआ तब जैसा आह्लाद हुआ है वह मेरे वर्णन करने की शक्ति से बाहर है! अहा! वृंदावन के हरि मंदिर! बस कमाल हैं। इस उमर में यदि श्रीकृष्ण की लीला का सच्चा चित्र देखना हो तो वृंदावन! कुसुम सरोवर पर महात्मा उद्धव जी के दर्शन! बलिहारी! वहाँ के कदंबकुंजों में पहुँचते ही मेरा मन मोहित हो गया। चित्त ने चाहा कि बस यहीं सब तज और हरि भज। यदि कोई संसार से विरागी होकर बनों में विचरना चाहे तो यह स्थान मेरी लघुमति में हरिद्वार से भी श्रेष्ठ है। हरिद्वार में चाहे और स्थलों से कम ही क्यों न हो किंतु थोड़ा बहुत आज काल के तीर्थों का सा प्रपंच है और यहाँ प्रपंच का लेश नहीं। इसके अतिरिक्त चीर घाट और रास-