पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१४७

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क्यों ठीक है ना? उनके भाग्य धन्य हैं। उनको अवश्य महात्मा ही कहना चाहिए जिन्हें इस पवित्र ब्रज भूमि में मरना नसीब हो। यहाँ ऐसे भी लोग हो गए हैं जिन की इच्छा से उनका शव वैकुंठी बनाने के बदले इस गोलोक में टाँग पकड़ कर घसीटा गया है। भगवान ऐसा नसीब दे तब जन्म लेना सार्थक है, क्यों?"

"आपका कहना सब ही यथार्थ है परंतु ऐसी कड़ुवी बात कहकर मेरा कलेजा न छेदो। हाँ! इतनी मेरी भी इच्छा होती है कि अभी नहीं, बुढ़ापे में ब्रजभूमि का निवास और आपके चरणों की सेवा। नाथ! वैष्णव मुक्ति नहीं माँगते। उनके लिये इस ब्रजभूमि के आगे स्वर्ग भी तुच्छ है―मोक्ष भी रद्दी है। उनका सिद्धांत है कि कहा करो बैकुंठे जाय, वहाँ नहीं बंशीवट, यमुना, गिरिगोबर्द्धन, नंद की गाय।"

"वास्तव में यथार्थ है। तेरा कहना सत्य है। जो आनंद जन्म जन्मांतर तक इस ब्रजभूमि में विचर कर भगवत् स्मरण करने में है वह स्वर्ग में कहाँ! था तो मुसलमान परंतु नब्बाब खानखाना (रसखान) भी कैसा कह गया है? उसका "एक एक बोल लाख लाख का मोल" है। उसने कहा है―

सवैया―

"मानुष होहुँ वही रसखान
बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पशु होऊँ कहा बश मेरो,
चरौं पुनि नंद की धेनु मझारन।