पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१५५

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जी कुछ रुपया पैसा आता था वह यों ही भांग के भाड़े में चला जाया करता था किंतु पत्नी के परामर्श से जब बंदर महाराज को जो कुछ मिले वह सब अपनी सुलक्षणी को दे देना और दूसरे भंग घर में पीना, बाहर नहीं―इस तरह दो प्रण कर लिये तो उनकी सुलक्षणी नित्य ही अपने हाथ से दोनों बिरियाँ भंग घोट कर उन्हें पिलाने लगी। ऐसे पैसा पैसा बचते बचते रुपया और रुपये से अशर्फी होते होते बंदर चौबे धनवान बन गए। दंपति पंडित प्रियानाथ जी और उनकी प्राणप्रिया प्रियंवदा को आशीर्वाद देने, उनके गुणों का गान करने लगे। लड़के पर भी उस दिन की पंडित जी की बात असर कर गई।

इस तरह मथुरा के एक बिगड़े घर को सुधार कर पंडित पंडितायिन ने भाई सहित, भगवानदास सहित और बूढ़े की स्त्री लड़के समेत वहाँ से कूंच किया। पंडित पंडितायिन के गुणों को देख कर बूढ़ा भगवानदास तो यहाँ तक लट्टू हो गया था कि बहुत बढ़कर, जब तक इनके पास बैठा रहता, घंटों तक इनके चेहरे की और देखकर मनही मन न मालूम क्या गुनगुनाया करता, बारंबार इनके आगे हाथ जोड़ जोड़ कर सिर झुकाया करता और मौके बेमौके इनसे कहा करता था कि―

"महाराज यह सारी जान्ना आपकी बदौलत है। नहीं तो मुझ जैसे जंगली गँवार को यात्रा कहाँ?"