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प्रकरण―१५

बूढ़े की घबड़ाहट।

बूढ़े भगवानदास के गृहराज्य का खाका तीसरे प्रकारण में खैंच कर उसे तहसील के चपरासी के साथ भेज देने बाद वह पंडित जी के साथ तीर्थ यात्रा करने के लिये, भगवती भागीरथी में अपनी बूढ़ी हड्डियाँ डुबो कर देव दर्शनों कृत- कुत्य होने के लिये और इस तरह अपना आपा सुधारने के लिये अवश्य चल दिया और गया सो भी अपने सब काम काज का बोझा बड़े लड़के पर डाल कर, उसे तोते की तरह उसके कामों का सवक रटाते हुए गया। किंतु तहसील में वह क्यों बुलाया गया था और बुलाने के पूर्व उसे ऐसी घबड़ाहट किस बात की थी―इन सवालों के लिये इस जगह थोड़ा बहुत लिख देना ही अच्छा है। इस बीच की घटना यहाँ प्रका- शित कर देने से न तो पाठक महाशय ही उसे भूलने पावेंगे और न उस बूढ़े के अंतःकरण में इस बात का उद्वेग रहेगा, क्योंकि यदि किसी के मन पर थोड़ा सा भी किसी बात का बोझा रहे तो फिर उससे भक्ति नहीं हो सकती। भक्ति जहाँ रहती है अकेली ही रहती है। जिस हृदय में वह निवास करती है वहाँ किसी मनोविकार को, मनोविकार ही क्यों ज्ञान वैराग्यादिकों को नहीं ठहरने देती और यदि संयोग वश बल