पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १४५ )

पूर्वक इन में से कोई आघुसे तो अपना डेरा डंडा उठाकर वहाँ से निकल भागती है। और बूढ़ा, बुढ़िया अपने पुत्र समेत भक्ति की गहरी कमाई करने के लिये बिदा हुए हैं।

बूढ़ा अब तक उस पीपल के पेड़ के नीचे अपने बाल बच्चों के बीच में रहा अवश्य उसके चित्त में घबराहट रही। घबराहट यदि साधारणा होती तो वह अपने कलेजे को किसी कोने में उसे डाल कर भूल जाता किंतु आज उसकी दशा यहाँ तक बिगड़ी हुई थी कि यदि दस वर्ष का बालक भी उसके चेहरे का चढ़ाव उतार देखता तो तुरंत कह देता कि-"बाबा आज इतने घबड़ाते क्यों हो?" वह हजार दूसे छिपाने का प्रयत्न करता था परंतु ज्यों ज्यों छिपाता था त्यों ही त्यों वह दौड़ दौड़ कर आँखों की खिड़की में आ झाँकती थी औरा झाँक झाँक कर चुगली खाती थी कि बूढ़ा व्यर्थ ही छिपाने का उद्योग करता है।

बूढ़ा पहुँचा हुआ था। चाहे पढ़ने लिखने के नाम पर वह एक अक्षर भी न जानता हो किंतु संसार की नीच ऊँच देखने में ही उसने बाल पकाए थे। दुनियाँ का अनुभव करते करते ही उसके दाँत एक एक गिर कर जवाब दे गए थे। इस विकर घाटी पर चढ़ते समय वह अनेक बार गिरा था, कई बार गिर कर सँभला था और कितनी ही बार गिरते गिरते बच गया था। यों गिरते पड़ते जीवन के गिरिशिखर पर पहुँ- चने ही से वह जो एक दिन भगवनिया था आज बाबा भगवान

१०