पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१६०

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मैं हाथ जलना इसी का नाम है।" सुनते ही सब घर वालों के चेहरे फीके पड़ गए, सब के सब भौचक से रह गए और अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार सब ही तर्क लड़ाने लगे कि मामला क्या है? खैर इन लोगों को यहीं तर्क लगाने दीजिए!

बूढ़ा भगवानदास सिर पर एक सफेद बर्फ सी पगड़ी, एक मिरजई और धोती पहने, कंधे पर एक दुपट्टा डाले अपनी दुहरी कमर को सोधा करने के लिये धूनी से लट्ठ का सहारा लिए एक लड़के को साथ लेकर सटासट माला के मनिए सटकाता हुआ, राम राम जपता हुआ, सब की घबराहट देख कर उन्हें धीरज दिलाता हुआ वहाँ ले बिदा हुआ। उसके जाने पर उसकी आज्ञा से सब अपने अपने काम पर लगे और इसने कोई डेढ़ घंटे में कोस भर चल कर तहसील की चौकी पर बरगद के पेड़ के नीचे जा कर दम लिया।

गुड़ैत मोती ने जो इसे लिवाने गया था जमादार नस्थेखाँ को खबर दी। उसने तहसीलदार साहन्द से इत्तिला की और साहब मानो इसीकी राह देखते हुए बैठे हों, खबर पहुँ चते ही वह बुला लिया गया। तहसीलदार इसके पूर्व परिचित थे। इसके गाँव में कई वर्ष तक पटवारी रह चुके थे। उनकी कारगुजारी से प्रसन्न होकर ही अफसरों ने उन्हें दर्जे बदर्जे बढ़ाते बढ़ाते तहसीलदार बनाया था। जिस समय मुँशी मुरब्बतअली मौज़े मुफ्त़ीपुर के पटवारी थे इस बूढ़े का बड़ा आदर करते थे और यह भी अनेक बार उनके दुख दर्द में काम