पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१६२

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मुझ पर नालिश ठुकवा दी। कुसूर उसका था कि उसने मेरे घोड़े को पानी नहीं पिलाया। अगर इस बात पर मैंने उसको गाली भी दे दी तो क्या गजब हो गया। है तो आखिर वह चमार ही न! चमार की हैसियत ही क्या?"

"हैं!!! आप इसलिये (मन में ही 'आच्छा हुआ मन का संदेह निकल गया') ही इतने नाराज होते हैं? पर देखिए साहब आप की गाली देने की बुरी आदत है। आप अपनी तबियत को सँभालिए। नहीं तो किसी दिन इसका नतीजा अच्छा न होगा। चमार क्या आपने अभी मुझे भी गाली दी।

"ओ हो! बड़े पंडत बने हैं? हमें नसीहत देने आए हैं। अच्छा हमने तो दी, गाली दी। अब तू हमारे ऊपर फौज चढ़ा लाना! तैंने जब अँधियारे उजाले अपने गाँव के बदमाशों से हमें पिटवाने ही का बंदोबस्त कर रखा है तब करना। अपने जी में आवे सो करना। कसर मत रखना!"

"सरकार आपको आज हो क्या गया है? मैं गरीब गँवार आप पर फौज चढ़ाऊँगा? चिउटियों पर पंसेरी मत फेंको! जो आपको करना हो सो करलो। मेरा सिर हाजिर है। आप मा बाप है। किसी के बहकाने में आकर मुझ पर झूठा इलजाम मत डालो। मैं मिट्टी के आदमी का भी जी नहीं दुखाना चाहता फिर आप तो हमारे मालिक हैं। आपने हमारी बस्ती का बहुत उपकार किया है। हम जो