पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१६५

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वह साला बड़ा भला बनता है। उस दिन हमें ही चरस पीने पर फटकारता था। अच्छा हो जो कहीं इसे डोकरे के किसी न किसी तरह थोड़ा बहुत नुकसान पहुँचे तो। यह हर एक आदमी को कल से नहीं बैठने देत। भला अगर हम चरस पीते हैं तो इसके बाप का क्या जाता है?” इन लोगों के बयान सुनकर बूढ़े ने कुछ न कहा तो न सही क्योंकि वह जानता था कि “जब इन्हीं की जबान से फैसला हुआ जाता है तो मैं क्यों बोलें?” किंतु बाबूलाल की आँखों में से आँसुओं की सावन की सी झड़ी लग गई। इस पर तहसील दार साहब को क्रोध आया। उन्होंने बाबूलाल के बहुत बुरा भला कहा। बुढ़े ने समझाया कि-“बेटा जी अखली बात हो र सच कह दो! यों तो मैं तुम्हारे बाप से भी बड़ा हूं और यों तुम्हारी रैयत हूँ। मेरा इतना लिहाज ही क्या?” बूढ़े की ऐसी नम्रता, ऐसी सजनता देख कर बाबूलाल का हृदय अधिक भर आया। उसने बहुतेरा चाहा किंतु रोते रोते उसकी धिग्धियाँ बँध गई। इस बारह मिनट रोने से जथे उसका कलेजर खाली हुआ तब वह बोला।

“बेशक इन तीनों का कहना सच है। मैंने बाबा की नसीहत से चिढ़ कर ( बाबा के पैर पकड़ कर उसके चरणों में सिर देते हुए ) आपको इनसे नाराज कराने के लिये ही ऐसा किया था। अब मैं आप दोनों से क्षमा माँगता हूं।”

“कुसूर तो बेशक ते ऐसा ही है कि जिसके लिये तुझे