पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१६७

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"राम! राम!!" ज्यों ही बूढ़ा वहाँ से चलने लगा तहसीलदार ने हाथ पकड़ कर उसे कुर्सी पर बिठला लिया। जिसे एक समय "पाजी" कहा था उसी का यह सत्कार! अब भूत शरीर में से निकल गया। उस दिन से किसी ने उनको गाली देते हुए नहीं देखा। इस तरह जैसे इन दोनों को भगवानदास की अच्छी संगति का फल मिला वैसे ही अनेकों को मिला। बहुतों को उसने बिगड़ते से बचाया।

खैर! तहसीलदार ने भगवान दास को सत्कार के साथ बिठला कर गाँव के हाल चाल की बातें पूछने के अनंतर, इधर उधर की बात चीत करके, खेती की दशा और लगान वसूली के विषय में कितनी ही आवश्यक छेड़छाड़ कर लेने बाद वही असली बात छेड़ी जिसके लिये भगवानदास डरता था। सवाल छिड़ते ही बूढ़ा एक बार कुछ सहमा। सहमा अवश्य परंतु सहसा इसने अपनी दुर्बलता प्रकाशित न होने दी। इसने समझ लिया कि "जो कहीं मैं कुछ भी घबड़ाया तो यह अभी सिर हो जायगा। हज़ार भला होने पर भी है हाकिम। और हाकिम मिट्टी का भी बुरा होता है।" बस इसी तरह का मन में बिचार कर यह बिना झबड़ाए चटपट बोल उठा―

"सरकार! यह भी होम करते हाथ जलना है। जमाने की खूबी है। मैं क्या कहूँ? आप ही समझ लें!"