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प्रकरण―१६

घबड़ाहट का अंत।

बाबा भगवानदास की घबड़ाहट देख कर उसकी स्त्री, लड़के, लड़कियाँ और बहुएँ, सबही पहले ही घबड़ा रहे थे, उन सब के बीच में से जिस समय एकाएक तहसील का दूत उसे लिवा ले गया तब उन्हें और भी व्याकुलता बढ़ी और एक दो, तीन और चार-इस तरह घंटे गिनते गिनते जब उसे लौटने में देरी हुई तो उन लोगों के कष्ट का ठिकाना न रहा। गाँव के भोले आदमी, यह उन्हें बिलकुल मालूम नहीं कि बुलाया क्यों है? उन सब का दारमदार केवल उस बूढ़े पर और सब से बढ़ कर यह कि उस जैसा महानुभाव, फिर यदि उन लोगों ने इस दुबिधा में पड़ कर खाना पीना, काम काज और बात चीत छोड़ दी तो उन विचारों का दोष नहीं। बूढ़े के जाने और लौट कर आने के बीच में आठ घंटे से अधिक नहीं बीते किंतु ये आठ घंटे उनके लिये आठ युग के बराबर निकले। ज्यों ज्यों समय निकलता गया त्यों ही त्यों उनकी व्याकुलता बढ़ती ही गई। उन लोगों ने मान लिया कि "जुरूर किसी न किसी बहाने से बाबा को काठ में दे दिया और अब हमारा घर वार लूटे बिना न छोड़ेंगे।" बस इस तरह के अनेक संकल्प विकल्प के फंदे में फँस कर उनके घर में कुहराम मच