पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१७२

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गया। रोना पीटना मच गया और ऐसा शोर गुल सुन कर अड़ोस पड़ोस के, जाति बिरादरी के और जान पहचान के आदमी, लुगाइयाँ इकट्ठी होने लगीं। इस कष्ट के समय आने वालों में से किसी का हियाब न पड़ सका कि भला यह तो पूछें कि तुम्हारे घर का कौन मर गया है?"

खैर जिस समय उसके घर में इस तरह रोना पीटना मच रहा था, इस तरह घरवालों के सिवाय पाँच पचास आदमी औरतें जमा हो रहे थे और जिस समय यहाँ का ढंग देखकर मालूम होता था कि घर का कोई न कोई आदमी मर गया है फिर यदि बूढ़े ने यह मान लिया कि उसका परपोता छत पर से गिर कर मर गया तो कुछ आश्र्चर्य नहीं। परपोता पैदा होना परम प्रारब्ध की बात है। उसी के कारण इस बुढ़ापे में बूढ़ा बुढ़िया हिंदुओं की रीति के अनुसार सोने की सीढ़ी पर चढ़े थे। भगवानदास को अवश्य ही घर के सब आदमी प्यारे थे। वह सब को समान समझता था, एक ही नजर से देखता था और सब के साथ वर्ताव भी एक ही तरह का किया करता था किंतु यह मनुष्य जाति का स्वभाव है कि जो पदार्थ जितना ही दुर्लभ हो उस पर उतनी ही प्रीति अधिक होती है। मारवाड़ी लोग बस इस लिये महँगी को प्यारी कहा करते हैं। दुनियाँ में प्रथम तो पुत्रमुख को दर्शन दुर्लभ, फिर बेटे का बेटा किस के नसीब में है? भला पोता भी एक दो के नहीं सैकड़ों के होता है और वे सब ही भाग्यवान