पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१७३

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समझे जाते हैं किंतु परपोता? अहा परपोता! परपोता जिस घर में पैदा हो जाय उसके आगे तो स्वर्ग सुख भी तुच्छ है! यही हिंदुओं का ख्याल है। पूर्वजन्म के परम पुण्यों से भगवान ने प्रसन्न होकर भगवान (के सचमुच) दास को परपोता दिया है। बस इसलिये सब से पहले इसका ख्याल उसी पर गया। किंतु ज्यों ही वह भीड़ को चीर कर भीतर पहुँचा उसे दूर से बालक खेलता हुआ नजर आया। उनके बीच में कोई लाश नहीं। तब उसने समझा कि "कहीं बाहर से किसी के मरने की खबर आई है।" मन में ऐसा संकल्प उत्पन्न होते ही उसका संदेह एक दामाद के पास दौड़ गया। वह दामाद बहुत दिनों से बीमार था। बस उसने मान लिया कि बही मर गया। ऐसा ख्याल पक्का होते ही वह अपने सिर पर हाथ मार कर "हाय! अब क्या होगा?" कहता हुआ गिरा। गिरते गिरते यदि उसके लँगोटिया यार पन्ना ने न सँभाल लिया होता तो इसी दम उसकी "राम राम सत्य" हो जाती किंतु उसने केवल सँभाला ही नहीं बरन कड़क कर कहा भी कि―

"कहो तो सही! मरा कौन है?"

बस इस तरह की आवाज सुनते ही सब का रोना बंद। एक दम सन्नाटा छा गया। सब ही एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और थोड़ी देर में इसका जवाब कहीं से न पाकर जो आने वाले थे वे सब अपना अपना मुँह लेकर चल दिए। ऐसे जब मैदान खाली हुआ तब वह बोला―