पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१७७

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बात की बात में यात्रियों की भीड़ से, बारात वालों से और साधारण मुसाफिरों से वहाँ का मुसाफिरखाना भर गया, बाहर के मैदान भर गए और सड़क में कसामसी होकर एक्के गाड़ियों का आना जाना बंद हो गया। अब लोगों के हल्ले गुल्ले के आगे कान पड़ी बात सुनी जाना बंद, इधर से उधर और उधर से इधर फिरना डोलना बंद और जब स्टेशन पर भीड़ के मारे कोनियाँ से कोनियाँ छिली जाती हैं, जब पैरों का कुचल कुचल कर चूर चूर हुआ जाता है और जब धक्का मुक्की के आगे एक कदम भी आगे बढ़ाना कठिन है तब बहुत ही हाजत होने पर भी पेशाब पाखाना बंद और खाना पीना बंद।

सरकार की आज्ञा से, प्रजा की प्रार्थना से, अपना लाभ समझ कर रेलवे कंपनी ने अवश्य ही नगर में टिकटघर खोल दिया है परंतु शहर के थोड़े जानकारों के सिवाय उस जगह टिकट लेने जावे कौन? बिचारे अपढ़ परदेशियों को मालूम ही क्या कि दिन भर टिकटघर खुला रहता है। जब रेलवे गाइड केवल अंगरेजी के सिवाय किसी देश भाषा में नहीं छपती है और न स्टेशनों पर यात्रियों को जतला देने का कोई नियम है तब थोड़े बहुत पढ़े लिखे यात्री भी इस बात को नहीं जान सकते। और जो अंगरेजी पढ़नेवालों ने जाना भी तो उनकी संख्या समुद्र में बूँद के समान। तीस करोड़ भारतवासियों में केवल तीन लाख। बस इस लिये इतनी भीड़ में से सौ दो