पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१८

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से बातचीत करने के समय एक व्यभिचारिणी को जो लज्जा होती है वह लोक लाज के भय से, पकड़ी जाने के संदेह से और इस लिये कृत्रिम-झूठी, और अपना पाप छिपाने के लिये, तब यह लज्जा स्वाभाविक लज्जा है, यह वही लज्जा है जो स्त्रियों का सच्चा आभूषण है। संसार में आदर्श दंपति के सच्चे प्रेम का सच्चे सुख का जिनको अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे अवश्य स्वीकार करेंगे कि ऐसी लज्जा नित्य नया आनंद देने वाली है। इसमें अलौकिक सुख है।

उस जगह इन दंपति के सिवाय कोई तीसरा व्यक्ति नहीं है, और इस कारण इन दोनों का प्रेम-संभाषण जी खोलकर हो रहा है। शायद ऐसे अवसर पर किसी भले आदमी को जाकर उनके सुख को लातों से रौंदना, आनंद को किरकिरा कर देना उचित भी नहीं है, और इसी कारण इन दोनों के प्रेमसंभाषण का उतना अंश छोड़ कर यहां उन्हीं बातों को दिखला देना मैं उचित सम- झता हूँ जिनका इस उपन्यास से संबंध है। मुझे आशा है कि ऐसा करने पर यह जोड़ी मुझपर नाराज न होगी और पाठक पाठिकाओं का भी थोड़ा बहुत मनोरंजन अवश्य होगा। खैर! कुछ भी हो पत्नी ने कहा―

"क्यों जी तुम मुझे इस जगह क्यों ले आए? मैं तो शर्म के मारे मरी जाती हूँ। चलो, घर चलो। जल्दी चलो। कहीं हमको कोई देख न ले।" इतना कहकर पति के पास से हटती हुई, घूंघट से अपना मुंह छिपाकर हाथ के इशारे से