पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१८१

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हल चल पैदा हो गई है। परंतु किसी की ताब नहीं जो इन बदमाशों को पकड़ सके।

यद्यपि पंडित प्रियानाथ और उनके साथियों को भी मर्दूमी का दावा है परंतु आज उनकी भी सिट्टी गुम। शहर के टिकट घर से अवकाश के समय टिकट न खरीद लाने पर पंडित जी छोटे भैया से नाराज होते हैं, सामान की रक्षा करने के लिये भोला कहार को, स्त्रियों को और बूढ़े बाबा को बार बार सचेत करते हैं और आगे के लिये लोगों को ऐसा कष्ट न उठाना पड़े इस लिये मन ही मन कुछ उपाय भी सोचते हैं किंतु आज इन से एक कदम भी वहाँ से डिगना नहीं बन सकता। "टिकट इंटर का लेना, अथवा थर्ड का" इस सवाल को हल करने के लिये दोनों भाइयों में खूब उलझा उलझी हुई। भीड़ को देखकर कांतानाथ की यहाँ तक राय थी कि "भाई भौजाई के लिये यदि सेकंड का टिकट भी ले लिया जाय तो अच्छा।" किंतु "आज सेकंड में जगह मिलनी असंभव है क्योंकि कई लोगों ने पहले ही से रिजर्व करा लिया है और इस भीड़ को देखते हुए जैसा इंटर वैसा ही थर्ड! फिर वृथा पैसा क्यों फेकना? इंगलैंड के वजीर मिस्टर ग्लैडस्टन जब आनुभव प्रास करने के लिये की कभी थर्ड क्लास में सफर किया करते थे तब हम कौन से धनवान हैं?" इस तरह कह कर इन्होंने आँख के इशारे में प्रियंवदा से पूछा और आँख के संकेत से ही जब उसने उत्तर दे दिया कि―"जैसी