पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १६९ )

आपकी इच्छा" तब थर्ड क्लास का टिकट ही लेना ठहरा आर कांतानाथ और गोपीबल्लभ दोनों किसी न किसी उपाय से टिकट भी ले आए। इस उपाय से ऐसा न समझना चाहिए कि किसी को कुछ दे दिला कर ले आए। बेशक इन्हें एक दो आदमी ऐसे भी मिले थे जो खर्च करने पर "बुकिंग आफिस' के भीतर जाकर टिकट ला देने को तैयार थे किंतु ऐसे टिकट मँगा लेने के लालच से शायद धोखे में आकर अपनी पूँजी भी गँवा बैठें तो क्या आश्चर्य। किसी किसी ने इनसे यहाँ तक सलाह दी थी कि पुलिस को कुछ दे दिला कर खिड़की के पास पहुँच जाना किंतु रिशवत देना और रिशवत लेना दोनों ही बुरे। ये दोनों भाई भी कहीं के किसी उहदे पर थे और हजारों के बारे न्यारे का अनेक बार अवसर आने पर भी इन्हें इन दोनों बातों से जब सौगंद थी तब कांतानाथ और गोपीबल्लभ ने पंडित पंडितायिन और बुढ़िया के हज़ार मना करने पर भी भीड़ में प्रवेश कर दिया। इन्होंने बहुतेरा कहा कि "आज भीड़ अधिक है तो कल सही।" परंतु दोनों ने इस बात पर बिल- कुल कान न दिया।

ऐसी गहरी भीड़ में घुस पड़ने से इनके रुपए पैसे के लिये खूब छीना झपटी हुई, वहाँ की रेल पेल से इनका शरीर पिस कर कुचल कर और लात घूँसे से चकना चूर भी हुआ और दोनों अपने अपने साफे भी खो आए किंतु वापिस आए और जान पर खेल कर टिकट लेकर आए। इस तरह दोनों जने