पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१८७

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वह मनुष्य जब सब लोगों को लेकर सेकंड क्लास के फाटक की ओर रवाना हुआ तब हजार रोकने पर भी अनायास धीरे से प्रियंवदा के मुख से निकल गया―

"निपूता यहाँ भी आमरा! मुँडीकाटा उपकार करने आया है? भेड़ की चाल में भेड़िया!"

अवश्य ही पंडित जी किसी उधेड़ बुन में लगे हुए थे। बह सुनते तो अपनी प्यारी के हृदय के भाव को जान सकते थे क्योंकि दंपत्ति के मन में टेलीफोन लगा हुआ था। उन्होंने प्रियंवदा के कथन को कुछ नहीं सुना और औरों ने कुछ ध्यान नहीं दिया।

अस्तु! जिस समय ये लोग मुसाफिरखाने से रवाना हुए यात्रियों की वास्तव में बहुत दुर्दशा थी। वे लोग घोर असह्म संकट में थे। भीड़ के ऊपर लिखे हुए कष्ट के सिवाय जब सब ही सब से आगे निकल जाने के यत्न में थे तब मार कूट का क्या कहना? टिकट कलक्टर किसी का बोझ अधिक बतला कर रोकता था, किसी के बालक का कटा टिकट न होने पर उसे धमकाता था और किसी का टिकट देखकर यों ही ठहरा देता था। प्रयोजन यह कि उस जरा से फाटक में होकर निकलते कम थे और इकट्ठे अधिक होते जाते थे। ऐसे समय यदि कुलियों को देकर, कर्मचारियों की मुट्ठी गर्म करके, किसी की खुशामद और किसी को कुछ है दिलाकर मुसाफिर आराम से गाड़ी पर सवार हो