पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९२

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गप्प शप्प होने लगी। थोड़ी देर पहले जो एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे अब दूर दूर का संबंध दूर दूर की जान पहचान निकाल निकाल कर आपस में मित्र बन गए।

अगले स्टेशन पर गाड़ी ठहरते ही बाप की सेवा करने और उसे कष्ट से बचाने के लिये गोपीबल्लभ अपने दर्जे में से उतर कर जगह न होने पर भी बूढ़े भगवानदास के पास जबर्दस्ती जा ठुँसा और कांतानाथ भी लपका हुआ भाभी के पास गया। वहाँ जाकर देखता क्या है कि उस दर्जे में आठ दस मुसलमानियों के बीच केवल प्रियंवदा ही ब्राह्मणी है। दर्जे में कहीं बाल बच्चों का पाखाना पेशाब पड़ा है और माँस रोटा फैला फैला कर उसकी साथिनें खाती जाती हैं और साथ ही इसे हँसती भी जाती हैं। बुढ़िया तीसरे दर्जे में बैठी हुई इनसे खुशामद करती और समझाती है तो कभी उसे आँख देखाती और कभी हँस हँस कर तालियाँ पीटती हैं। प्रियंवदा कष्ट के मारे व्याकुल होकर खिड़की के सहारे खड़ी खड़ी रो रही है और पायदान पर खड़ा हुआ एक मनुष्य "जान साहब! रोओ मत! तुम्हारे रोने से मेरा कलेजा फटा जाता है। ज़रा नीचे आजाओ तो मैं अभी तुम्हें पहले दर्जे में जा बिठलाऊँगा। वद्दाँ से मेरा दर्जा भी पास है। तुम्हें कष्ट नहीं होने दूँगा। मुझे अपना दास समझो।" कहता जाता है और उसकी ओर देख कर, घूर कर मुस कराता जाता है। इधर उधर देख कर लोंगों की नजर बचाता हुआ कभी अपने रूमाल से आँसू