पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९३

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पोंछना चाहता है तो कभी उसकी आँखों से अपनी आँखे उलझाने का प्रयत्न कर खिढ़की की चाबी खोलता हुआ उसकी कोमल कलाई को अपने हाथों का सहारा देकर उतारने का उद्योग करता है। उसका मन उछल उछल कर बाहर आता जाता है और उसकी आँखे कह रही हैं कि हम दूसरी गाड़ी में लेजाने के लिये मखमल बनने को तैयार हैं ताकि तुम्हारे पैरों में स्टेशन की कंकरियाँ न गड़ें और पहले दर्जे में गही तकिये पर तुम्हारे साथ हमें भी आराम करने का सौभाग्य प्राप्त हो।

यह कुछ भी बकझक करता रहे प्रियंवदा रोने के सिवाय- रो रो कर अपने गोरे गुलाबी गालों के ऊपर से आँसुओं की धारा बहाकर अपनी अँगिया भिगोने के सिवाय और बीच में हिचकियाँ भरने के सिवाय चुप। अब इस आदमी से रहा न गया। इसने तुरंत ही अपनी जेब में से प्रियंवदा के आँसू पोछने के लिये, रुमाल निकाल कर "जान साहब रोओ मत!" कहते हुए ज्यों ही हाथ फैलाया प्रियंवदा ने पीछे हटते हुए- और "चल निगोड़े दूर हो। यहाँ भी आमरा!" कहते हुए अपने कोमल कोमल हाथों से इसको एक हलका सा धक्का दिया और उसी समय कांतानाथ ने "भाभी डरो मत! मैं आ पहुँचा।" कहते हुए उस आदमी की टाँग पकड़ कर नीचे गिरा दिया। गिरा कर दस बीस गालियाँ दी, पाँच सात लातें मारी और उसी समय गाड़ी रवाना होने की तीसरी घंटी की आवाज