पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९४

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सुन कर भागा हुआ गाड़ी चल देने पर लपक कर पायँदाज पर जा चढ़ा और चाबी बंद पाकर मुसाफिरों के धक्के देने पर भी मार की कुछ पर्वाह न कर खिड़की की राह जिस समय इसने दर्जे में बैठते हुए बाहर को देखा तो वह आदमी भी अपनी धूल झाड़ कर अपने दर्जे में जा बैठा। सब देखते के देखता ही रह गए कि मामला क्या है?

जब पहले खिड़की के पास खड़ी हुई प्रियंवदा रो रही थी और वह आदमी इसकी ओर हँस हँस कर कुछ कहता जाता था तब इसकी साथिनें समझे हुए थीं कि इन दोनों का आपस में कुछ लगाव है इसलिये वे चाहती थीं कि यदि यह अपने आप न उतर जावे तो अपने आदमियों से कह कर इसे उतरवा देना चाहिए किंतु इस घटना से वे जान गईं कि उस आदमी की बदमाशी है इसलिये उनकी घृणा अब सहानुभूति में बदल गई और उन्होंने आराम से बैठने की इसे जगह भी देदी। इस घटना के बाद दो तीन स्टेशनों से होकर गाड़ी बिना ठहरे ही निकल गई। इस कारण न तो कांतानाथ ही भाई साहब से खबर देने जा सका और न किसी को प्रियंवदा के पास आकर उसकी संभाल पूछने का अवसर मिला। हाँ! उस आदमी की इतनी मारखाने पर भी तृप्ति न हुई। वह फिर भी चलती गाड़ी में बाहर ही बाहर पायंदाज पर चलता हुआ गाड़ियों को पकड़े पकड़े इसके पास आकर खिड़की में मुँह डाल कर फिर न मालूम क्या