पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९८

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मिनट में बूढ़ा, बुढ़िया, कांतानाथ, गोपीबल्लभ, भोला और गौड़बोले अपना अपना असवाब लिए हुए पंडित जी के पास आ खड़े हुए। सब सामान सँभाला गया तो एक ट्रंक कम। "बस भोला के चार्ज में से गया।" कहकर पंडित जी ने उसे लाल लाल आँखें दिखलाई। "हाय! मेरे पास तो अब एक धोती पहनने तक को न रही!" कहकर प्रियंवदा ने मुँह बिगाड़ दिया। "हैं हैं! बावली रोती क्यों है? एक नहीं तेरे लिये हज़ार कपड़े मौजूद! प्रयाग जी में क्या कपड़ों की कमी है?" ऐसा कहकर जब पंडित जी अपनी पत्नी को आश्वा- सन दे रहे थे गाड़ी में से निकाल कर ट्रंक सिर पर लादे हुए भागता हुआ वही आदमी आया और ट्रंक धरती पर डाल कर प्रियंवदा के कान में धीरे से कुछ कह कर वह गया! वह गया!! और देखते देखते न मालूम किधर गायब हो गया। तक पंडित जी बोले―

"क्या कह गया!"

"कुछ नहीं नाथ! फिर यहाँ भी आ मरा!"

"नहीं कुछ तो कहा होगा? कहती क्यों नहीं है? क्या कहा?"

"अरे! आपको भी वहम हो गया? अच्छा सुनो! मैं कहती हूँ सुनो!" कह कर प्रियंवदा ने पंडित जी के कान में कुछ कहा और तब वह कहनेवाली जितनी हँसी सुननेवाला उससे चौगुना, पचगुना हँसा। हँसते हँसते दोनों के पेट में