पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१९९

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बल पड़ गए। आँखों में आँसू निकल पड़े और दोनों ही के मुँह लाल हो गए। इनके संगी साथी न जान सके कि मामला क्या है? सब भौचक से रह गए। और दोनों को हँसते देख कर इनके साथ वालों को हँसी का मतलब समझे बिना भी हँसी आ गई। अस्तु और हँस रहे हैं तो हँसने दीजिए। किंतु उस आदमी की ऐसी हरकत देखकर न मालूम क्या क्या बातें याद करके कांतानाथ के तन बदन में आग लग गई। उनकी तिउरियाँ क्रोध के मारे ऊँची चढ़ गईं। गुस्से से उनके होंठ फड़फड़ाने लगे और न मालूम मन ही मन क्या बड़बड़ाते हुए वह कुलियों के माथे सामान लदवा कर सब के साथ टिकट बाबू को टिकट थँमा कर स्टेशन के बाहर आ खड़े हुए।



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