पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२०२

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आदमी का चोला बार बार थोड़े ही मिल सकेगा? क्या एक दिन न खाने में मर जाँयगे और मरेंगे भी तो गंगा महारानी के किनारे?"

इस कारण जब यह पार्टी भूख प्यास से खूब व्याकुल हो रही थी तीर्थ गुरुओं के नौकर और ब्राह्मण होने पर वे इन्हें यमदूत से दिखलाई दिए। ये लोग चाहे इस तरह हज़ार व्याकुल हों तो क्या, ये भूख प्यास से मर ही क्यों न जाँय किंतु पंडों के नौकरों ने जिस काम के लिये घेरा है उसका जवाब पाए बिना वे इन्हें रास्ता देनेवाले थोड़े ही थे? उनमें से किसी ने पूछा―"कहाँ से आए हो?” कोई बोला―"तुम्हारी जात कौन?" "तीसरे ने दूसरे की बात काट कर कहा―"अगर जयपुर रहते हो तो हमारे साथ चलो।" चौथा तीसरे को घुड़क कर पंडित जी का हाथ खैंचते हुए कहने लगा―"आओं आओ हमारे साथ चलो। ये सब साले लुच्चे हैं। यों ही रोज रोज बिचारे यात्रियों को दिक किया करते हैं।" पाँचवा चौथे के हाथ में से पंडित जी का हाथ छुड़ाता हुआ चौथे को एक थप्पड़ मार कर―"तू साला और तेरा बाप साला? साला हमारे जजमानों को लिए जाता है। आओ जी हमारे साथ।" छठे ने कहा―"यह आए पंच। तेरा मुँह जो हमारे जजमान को ले जाय। अभी अघोड़ी बिगाड़ डालू? जूते मारते मारते चाँद गंजी कर डालू तो मेरा नाम! जानता है तू मुझे?" पाँचवें ने लाठी उठाकर छठे को आँखे दिखलाते हुए―