पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२०४

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बहियाँ दबा दबा कर पंडे स्वयं इनके पास आने लगे। स्टेशन पर नौकरों ने यदि सवाल पर सवाल करके कर्कश शब्दों से इन्हें दिक कर डाला तो यहाँ आइए, पधारिए, अन्नदाता आदि के संबोधन के साथ इन लोगों के बाप दादाओं के नाम पूछे जाने लगे, गाँव, जिला, राज्य का किसी ने सवाल किया तो कोई जाति पाँति का, कुल का, खानदान का पचड़ा ले बैठा। उस बूढ़े ने इन लोगों से बहुतेरा कहा कि ये हमारे जजमान हैं। हमें ही ये लिवा कर आये हैं और गुरु जी का भगवान स्वर्ग वास करै। गुरुआनी विचारी विधवा है। उसके मुँह का कौर न छीनो। सात घर में ताला लग गया है। उस अनाथ अबला को मत सतायो। परंतु सब ने उसे फटकार दिया और यहाँ तक कह दिया कि-"उस जाटों के पुरोहित के ब्राहाण यजमान कहाँ से आए? गढ़ाये भी है कभी ब्राह्मण?" किसी ने कहा- "गौड़ गौड़ हमारे!" कोई बोला "गुजराती गुजराती हमारे!" किसी ने कहा―"जयपुर हमारा! और कोई कहने लगा― "जोधपुर हमारा!" इन्होंने कहा―"यों हम किसी की नहीं मानते। यदि कोई भी न मिला तो यही बूढ़ा संतोषी (स्टेशन से साथ आनेवाले को दिखाकर) हमारा पुरोहित। तुम्हारे लफंगे नौकरों से तंग आकर ही हमने इसे पसंद किया था। हाँ! मुफ्त़ीपुर के पंडित रमानाथ शास्त्री के हस्ताक्षर कोई हमें दिखलादे तो वह हमारा पुरोहित। वही हमारे पूज्यपाद पिता जी थे।"