पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२०८

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"महाराज नाराज न हुजिए। विद्या न पढ़ने से ही, क्षमा कीजिए, आप लोगों के घर बैठे जा रहे हैं। मैंने सुना है कि इन दस बीस वर्षों के बीच में कोई सौ सवा सौ घर नष्ट हो गए। यजमानों से जो पाते हो उसे न तो कभी सुकृत में लगाते हो और न ब्राह्मणों के पट्कर्म अग्निहोत्रादि से कभी प्रायश्चित करते हो, यजमान जिस कार्य के लिये आप लोगों को देता है जब वह काम ही आपके यहाँ नहीं तब ही आप लोगों की दुर्दशा है! मैंने सुना है कि, क्षमा करना, आप लोगों का पैसा कुकर्मों में जाता है।"

"हाँ यजमान सच है!"

"अवश्य सत्य है और हम अपने पिता की आज्ञा से आप को मानने में बाध्य नहीं हैं। परंतु आप का जी दुखाना भी नहीं चाहते। आपका हक़ आपको मिलेगा और कर्मकांड के लिये हम ब्राह्मण साथ ले आए हैं।"

"अच्छी बात है। आपकी मर्जी। नहीं तो ब्राहाण वहाँ भी अच्छा मिल सकता है। और अब हम लोगों के बालकों को पढ़ाने के लिये पाठशाला भी खुली है। थोड़े दिनों में आपकी यह शिकायत मिट जायगी।"

फिर भी निर्लोभी गौड़बोले ने गुरु जी के बतलाए हुए ब्राह्मण को श्राद्ध कराने का काम देने का आग्रह किया और ये सब वहाँ से नंगे पैरों, गुरु जी के सवारी के लिये आग्रह करने पर भी केवल भक्ति के विचार से पैदल चलकर सिता-