पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १९८ )

इस लिये कि वह अपने चरणों से उत्पन्न हुई है, चरणों में भक्तों का निवास और भक्तों से भगवान जब स्वयं हार चुके हैं, भक्तों से हार खाने में जब वह अपनी शोमा सम- झते हैं तब उसे जिताना ही चाहिए, फिर वह अपने इष्टदेव अपने प्यारे शंकर की प्यारी है। इसलिये भगवान ने शंकरप्रिया को विजय की बाजी दिलाने के लिये अपनी प्यारी को समझा दिया और समझा बुझा कर यहाँ तक राजी कर दिया कि जो भगवान भुवनभास्कर की दुहिता, धर्मराज की भगिनी और वासुदेव की अर्द्धांगिनी थी वह अपना रूप, अपना गुण और अपना प्रभाव भगवती भागीरथी को प्रदान करके महारानी गंगा में मिल गई और दूध बुरे की तरह मिल गई, यहाँ तक मिल गई कि अपना नाम तक न रक्खा। हज़ार प्रेम होने पर भी दो सखियों का आलिंगन घंटे दो घंटे से अधिक नहीं रह सकता है। जों मिला है उसका बिछुड़ना अवश्यंभावी है परंतु हिंदू जो पुनर्जन्म मानते हैं उनका मिलन और बिछुड़न अनेक जन्मों तक बार बार होता है। और यह सम्मेलन इसी लिये अलौकिक है कि इसमें मिलन के अनं- तर बिछुड़न नहीं। गंगा यमुना के अलौकिक प्रेम का यही नमूना है। मन में ऐसा ही भाव उत्पन्न होता है? क्यों भैया होता है ना?"

"हाँ भाई साहब होता है! वास्तव में अलौकिक छटा है। मेरे हृदय में जो आनंद हुआ है वह गूँगे का गुड़ है। गूंगा