पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २०० )

का निस्तार करने के लिये हमारे नेत्रों के सामने है और तीसरी वेणी सरस्वती का प्राचीन काल में ऋषि महर्षियों, ब्राह्मण महात्माओं के मुख कमल से उपदेशामृत रूप में धाराप्रवाह होता था। भगवती सरस्वती उस समय वाणीरूपिणी होकर बहती और श्रोता गण के हृदय कमल को विमल करके शरीर मल को धोनेवाली नदी द्वय में मिल जाती थी। हिंदुओं के दुर्भाग्य से उस तीसरी धारा को लोप हो गया। स्थान वही है तीर्थ यही है और सात सात चौदह पीढ़ियों का उद्धार करने की शक्ति वही है परंतु उसे प्राप्त कर अलौकिक सुख का अनु- भव करने के अधिकारी नहीं हैं।"

"आपका कथन यथार्थ है। अक्षर अक्षर से अमृत का संचार होता है। शब्द शब्द से मेरा मलिन मन पवित्र होता है किंतु इतना और बतला दीजिए कि सरस्वती नदी कहाँ है? दो धाराओं का दर्शन होता है किंतु तीसरी धारा?"

"तीसरा धारा का पता किले के पास दिया जाता है। जिनके अंतः करण सच्छास्त्रों के सुसंस्कार से, महात्माओं के सदुपदेश से दृढ़ हो गए हैं और जिन की बुद्धि मैं इस कारण कुशाग्रता है और ऐसी ही बातों से जिन की दिव्य दृष्टि कही जाती है उन्हें अंतःकरण के लोचनों से अब भी तीसरी धारा के दर्शन होते हैं। केवल अधिकारी चाहिए।"

"बेशक! तब जो सरस्वती पंजाब में है, जो गुजरात में है–वह और यह एक ही है अथवा जुदी जुदी?"