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चौपाई। प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा।

सादर जासु लहहिं नित नासा॥
तुमहिं निवेदित भोजन करहीं।
प्रभु प्रसाद पट भूषण धरहीं॥
सीस नबहिं सुर गुरु द्विज देखी।
प्रीति सहित करि बिनय विसेषि॥
कर नित करहिं राम पद पूजा।
राम भरोस हृदय नहिं दूजा॥
चरन राम तीरथ चलि जाहीं।
राम बसहू तिनके मन माहीं॥
मंत्रराज नित जपहिं तुम्हारा।
पूजहि तुमहिं सहित परिवारा॥
तर्पण होम करहिं विधि नाना।
विप्र जिवाहि देहिं बहु दाना॥
तुमसे अधिक गुरुहिं जिय जानी।

सकल माय सेवहिं सनमानी
दोहा। सब कर माँगहिं एक फल, राम चरन रति होउ।
तिनके मन मंदिर बसहु, सिय रघुनंदन दौउ॥
चौपाई। काम, क्रोध, मद, मान, न मोहा।

लोभ, न छोभ, न राग, न द्रोहा॥
जिनके कपट, दंभ, नहिं भया।

तिनके हृदय बसहु रघुराया॥