पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२१८

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जाति पाँति धन धर्म बड़ाई।
प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
लब तजि तुमहिं रहइ लय लाई।
तेहि के हृदय बसहु रधुराई॥
स्वर्ग नरक अपवर्ग समाना।
जहँ तहँ देख धरे धनु बाना॥
कर्म बचन मन राउर चेरा।
राम करहु तिहिक उर डेरा॥

दो॰―

जाहि न चाहि कबहुँ कछु, तुम सन सहज सनेह।
बसहु निरंतर तासु मन, सो राउर निज गेह॥"

यथार्थ है! सत्य है? सब शास्त्रों का निचोड़ है। वास्तव में ऐसे ही महात्माओं का हृदय भगवान के निवास करने के योग्य है। और ऐसे महात्माओं के निरंतर निवास से पर्वों, महापर्वणियों पर इकट्ठे होने से प्रयाग तीर्थराज कहलाया है। गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुए अभी तीन सौ वर्ष हुए हैं। उनके जमाने तक प्रयागराज में ऐसे महात्मा निवास करते होंगे। उस समय तक इस स्थान का वही पुराणप्रसिद्ध प्रभाव, परम बंदनीय शोभा होगी। यदि उस समय आज कल का सा प्रयाग होता तो शायद उन्हें कुछ संकोच होता!"

"नहीं अब भी वही प्रयाग है और कल्पांत तक वैसा ही रहेगा। जहाँ तक सितासित संगम विद्यमान है वहाँ तक