पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२१९

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वही स्थान और वहीं आशा! कुछ वर्षों पूर्व यहाँ की धर्म सभा ने, यहाँ के सनातनधर्मावलंबी सज्जनों ने वैसी ही झलक दिखाने का उद्योग किया था। आज कल फिर ये कुंभ- कर्णी निद्रा में हैं। जब जागेंगे तब फिर वही झलक दिखाई देने की आशा है।"

"आशा रखना अच्छा है। आशा ही पर संसार जीवित है परंतु अब बहुत बिलंब हुआ जाता है। श्राद्ध की सब सामग्री तैयार है। पहले जिस कार्य को आए हो उसका निर्वाह कर लो फिर इसका विचार करेंगे।" ऐसा कह कर गौड़बोले ने दोनों भाइयों को चिताया। "ओ हो! बड़ी देरी हो गई! बातों ही बातों में एक घंटा खर्च हो गया।" कह कर पंडित जी ने जब अपनी धर्मपत्नी की ओर देखा तब उसने नेत्रों के संकेत से समझा दिया कि "कुछ चिंता नहीं, इस धर्मचर्चा में बड़ा आनंद आया। यही भगवती के दर्शनों का फल है। यदि ऐसे ऐसे कामों में मनुष्य का सदा चित लगा रहे तो फिर विपत्ति का वास्ता ही क्या?" "हाँ सत्य है।" कहकर पंडिय जी कार्य में प्रवृत्त हुए।