पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/२२१

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तो सब ही आधे बाल मुँड़ लेने के बाद यात्री से पैसों के लिये झगड़ रहे थे। यदि किसी ने इस गड़बड़ से बचने के लिये पहले ठहरा लेने का सवाल करने की चतुरता दिखाई तो उसके चेहरे की ओर देख देख कर नाऊ ठाकुर हँसते गुर्राते और मुँह मोड़ लेते थे। यदि किसी ने आने दो आने दिखाए तो गालियाँ देते और इस तरह जब तक चार आने, छः आने और रुपथा घेली नहीं पा लेते यात्री का पिंड नहीं छोड़ते थे। कभी सरकार, अन्नदाता और महाराज की पदवी देकर उसकी खुशामद करते, खुशामद ही खुशा- माद में उसे चौथे आस्मान पर पहुँचा देते और कभी नाराज होकर उसे, उसके पुरखाओं को गालियों के प्रसाद से नरक मैं जा ढकेलते थे। बस इस तरह गाँठ का पैसा गँवा कर प्रयागी नाइयों से अपने सिर पर हाथ फिराने बाद, भोंथे उस्तरे से मुँडवा कर सिर पर, दाढ़ी पर, मोछ पर चोट खाते, लहू पोंछते, गालियाँ खाते और बिलखते बिलखते यात्री वापिस आते थे। भोला की ऐसी ही दुर्दशा देख कर पंडित जी घबड़ा उठे।

पंडितजी का और इसके साथ में इनके साथियों का अवश्य ही सौभाग्य समझो। सौभाग्य इस लिये कि इनकी सूखी सूखी बातें सुन कर जंगी महाराज कुछ कुछ डर गए थे। बस इसलिये उन्होंने कृपा कर इन लोगों को नाइयों के फंदे से बचा दिया। उनकी आज्ञा से तट ही तख्तों पर बैठ